मानव की अतृप्त लतालाओं और यौन विकृतियों का प्रतीक हैto
कंकाल, जो जीवन के कड़वे सच के रूप में हमारे सामने आ
खड़ा होता है .
संतान की इच्छुक किशोरी को स्वामी निरंजन की कृपा ? से
पुत्र तो मिला लेकिन पति से दूर रह कर भी माँ बन जाने का उसे
वया दंड मिला? दंड के वाबजूद वह क्या अपने पुत्र विजय को
अपना बना सकी?
तारा उर्फ यमुना का कोठे से उद्धार कर मंगल ने उसे अपने बच्चे
की मां तो बना दिया लेकिन पत्नी बनाने का साहस न कर सका.
विजय और मंगल दोनों ही यमुना, घंटी और माला की तरफ
आकर्षित होते रहे, पर कौन किसे पा सका? कथानक के
विस्तार और पात्रों की भरमार के बावजूद कथासूत्र कहीं
बिखरता नहीं, जो प्रसाद की विशेषता है. मानवीय दुर्बलताओं से
भरे पात्रों का चयन और सधी हुई भाषाशैली पाठकों को
आकर्षित करती है.
Author's Name | Jai Shankar 'Prasad' |
Binding | Paper Back |
Language | Hindi |
Pages | 168 |
Product Code: | 826 |
ISBN: | 9788179872918 |
Availability: | In Stock |
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