• Skundgupt
भारतीय राजनीतिक इतिहास में 'गुप्तयुग' को 'स्वर्णयुग' भले ही कहा जाता हो, किंतु इस कथित ' स्वर्णयुग ' में भी राजाओं के आपसी वैरविरोध के साथसाथ राजघरानों की पारिवारिक कलह आदि को कमी नहीं रही. इन्हीं कारणों से यहां शकों , हूणों और मंगोलों के हमले होते रहे और धीरेधीरे गुप्त साम्राज्य का पतन होता रहा. गुप्तयुग के इस अंधकारमय वातावरण में एक तेजस्वी नक्षत्र के रूप में स्कंदगुप्त का उदय हुआ, जिस ने अपने बाहुबल और अपनी सूझबूझ के बल पर विदेशी हमलावरों के दांत खट्टे किए. इसी स्कंदगुप्त को केंद्र में रख कर जयशंकर 'प्रसाद' ने 'स्कंदगुप्त' नाटक की रचना की, जो राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक भावों से ओतप्रोत है. नाटक को सरस बनाने के लिए स्कंदगुप्त और देवसेना की प्रेम कथा की भी सृष्टि स्वाभाविक रूप में की गई है. प्रसंगवश बौद्धों और ब्राह्मणों के मतभेद भी उभर कर आए हैं, जिन में उन की संकुचित मनोवृत्ति साफ झलकती है प्रेम, सौंदर्य आदि अनुभूतियों एवं सांस्कृतिक पुनरुत्थान के प्रयासों से परिपूर्ण यह नाटक हर भारतीय पाठक के लिए
Author's Name Jai Shankar 'Prasad'
Binding Paper Back
Language Hindi
Pages 124
Product Code: 885
ISBN: 9788179873533
Availability: In Stock
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Skundgupt

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  • Brand: Vishv Books
  • Product Code: 885
  • ISBN: 9788179873533
  • Availability: In Stock
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