दो भाई करीबी रिश्तों के कथित प्रेम की आड़ में पनपने वाले ईष्याद्वेष को उजागर करती चुनिंदा कहानियों का संग्रहtoदो भाई'. बचपन में एक तो रोते देख दूसरा भाई भी रोने लगता था, लेकिन बड़े होने पर वही भाई एक दूसरे की मृत्यु पर भी नहीं रोते क्योंकि अब उन्हें अपने पराए की पहचान हो जाती है विवाह के बाद तो किशन, अपने सगे भाई को कर्ज दिलाने के नाम पर प्रपंच रच कर उस के हिस्से का घर भी हड़प लेना चाहता है. क्या पत्नी की सीख भाई के प्रेम पर हावी हो जाती है? 'दो भाई' तथा अन्य ऐसी कहानियां जो मानवीय चरित्र के विभिन्न पक्षों को प्रस्तुत करती हैं.
Author's Name | Munshi Premchand |
Binding | Paper Back |
Language | Hindi |
Pages | 148 |
Product Code: | 734 |
ISBN: | 9788179871997 |
Availability: | In Stock |
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