जिन्हें हम ने आदर्श माना, वास्तव में वे आदर्श न हो कर हमारे पथभ्रष्टक थे. इसी कारण हम पगtoपग पर गिरते रहे, पिछड़ते रहे और अंततः इसी कारण हजारो वर्षो तक हम विदेशियों के गुलाम भी रहे. इन का सब से बड़ा कारण इन विभूतियों में "मैं", 'मेरा' और 'मुझे' का बोलबाला था. बाकी सब उन के सामने शून्य थे. इसीलिए हम इस पुस्तक में उन विभूतियों की चर्चा कर रहे हैं, जिन्होंने 'हमारा' और 'हम' पर अपना सारा जीवन न्यौछावर कर दिया, जैसे की "मैं" तो उनके शब्दकोश में था ही नही. ये ही वे विभूतियां हैं जो हमारे समाज के गुदड़ी के लाल हैं, जिन्होंने अपनी इच्छाशक्ति, अपेक्षा तथा परिवार को भी 'अपने देश' के लिए कुरबान कर दिया, क्योँकि इन व्यक्तियों को न तो चाटुकारिता पसंद थी और न ही वे अपने को 'भगवान' कहलवाना चाहते ठे. उन का उद्देशय तो केवल भारत व भारतीय समाज को समृद्ध तथा खुशहाल बनाना था.
Author's Name | Rakesh Nath |
Binding | Paper Back |
Language | Hindi |
Pages | 240 |
Product Code: | 1601 |
ISBN: | 9789350650745 |
Availability: | In Stock |
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Bhartiya Pratibhayein
- Brand: Vishv Books
- Product Code: 1601
- ISBN: 9789350650745
- Availability: In Stock
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