• Premashram
अपनी पैतृक ज़मींदारी तीन भाइयों में बंट जाने पर महत्वाकांक्षी बाबू ज्ञान शंकर ने पहले तो अपने ससुर राय कमलानंद की जायदाद हथियाने की कोशिश की, किन्तु वंहा दाल गलते न देख कर उन्होंने अपनी विधवा साली और उस की जमींदारी पर भी दांत गड़ाये। इस केव लिए उन्होंने न जाने कितने ढोंग किये, फिर भी क्या अपने उद्देश में सफल हो सके? रामराम कृष्णकृष्ण जपते हुए परया माल अपना बनाने के चक्कर में क्या वह अपने हिस्से में आई पैतृक जमींदारी को भूल सके? अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए उन्होंने प्रजा पर क्याक्या अत्याचार नहीं किये। इसी की गौरव गाथा हैto प्रेमचंद का उपन्यास प्रेमाश्रम भारतीय स्वाधीनता संग्राम की पहली झांकी और भावनागत राम्राज्ये का स्वप्न प्रेमाश्रम की निजी विशेषता है.
Author's Name Munshi Premchand
Binding Paper Back
Language Hindi
Pages 432
Product Code: 740
ISBN: 9788179872055
Availability: In Stock
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Premashram

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  • Brand: Vishv Books
  • Product Code: 740
  • ISBN: 9788179872055
  • Availability: In Stock
  • INR396.00