होरी की बड़ी तमन्ना थी कि द्वार पर एक दुधारू गाय बंधी हो, जिस की सेवा कर के वह संसार सागर से पार हो जाए। भोला की मेहरबानी से ऐसी एक गाय हाथ आ भी गई, किंतु छोटे भाई की ईर्ष्या से वह जल्दी ही हमेशा के लिए होरी से छिन भी गई।
इस गाय के चक्कर में होरी ने अपना क्या नहीं खोया? किस का कर्जदार नहीं हुआ? किस की बेगार नहीं की? फिर भी क्या वह अंतिम समय में गोदान कर सका?
‘कृषक जीवन का महाकाव्य’ माने जाने वाले इस उपन्यास ‘गोदान’ में प्रेमचंद के संचित अनुभव एवं उन की निखरी हुई कला सहज ही दिखाई देती है इस में सामंतों, साहूकारों, धर्म के ठेकेदारों की काली करतूतों को भी बखूबी उजागर किया गया है।
प्रेमचंद का यह सर्वाधिक चर्चित एवं पठनीय उपन्यास है।
Author's Name | Munshi Premchand |
Binding | Paper Back |
Language | Hindi |
Pages | 388 |
Product Code: | 712 |
ISBN: | 9788179871775 |
Availability: | In Stock |
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